आसन और योग के संदर्भ में जन सामान्य में फैली भ्रांतियां
आज के वर्तमान समय में जब हम जन सामान्य में योग के संदर्भ में चर्चा करते हैं तो जनसामान्य का सामान्य मनुष्य आसन को ही योग समझता है इसका कारण यह है कि यदि हम पिछले 5 दशकों के इतिहास के संदर्भ में चर्चा करें तो आसन को ही सर्वाधिक जन सामान्य के समक्ष प्रस्तुत किया गया है।
सामान्यजन के अनुसार
आसन का अभ्यास ही योग है ।
आसन मुख्य रूप से एक शारीरिक अभ्यास है जबकि योग आसन से 10 गुना वृहद अभ्यास है। वास्तव में आसन योग का एक हिस्सा मात्र है ।
यदि हम पातंजल योग सूत्र के अनुसार अष्टांग योग के संदर्भ में चर्चा करें तो महर्षि पतंजलि के अनुसार योग के आठ अंगों को माना गया है
1.यम
2.नियम
3.आसन
4.प्राणायाम
5.प्रत्याहार
6.धारणा
7.ध्यान
8.समाधि
इस प्रकार महर्षि पतंजलि के अनुसार आसन योग का एक अंग मात्र है
हठयोग के अनुसार आसन एक महत्वपूर्ण अंग है क्योंकि हठयोग का लक्ष्य है
शरीर से मन पर नियंत्रण
पतंजलि ने आसनों के प्रकार , आसनो की क्रियाविधि या आसनों के अभ्यास के बारे में वर्णन नही किया था ।
समय के परिवर्तन के उपरांत महार्षि पतंजलि के उपरांत हठ योग के समय मे कुछ ग्रन्थों में आसनों का वर्णन वृहद रूप में किया गया।
हठयोग के कुछ ग्रन्थों में आसन को योग के अभ्यास का प्रथम अंग माना गया ।
आसनों के वास्तविक एवं उच्च कोटि के अभ्यास से हम मन, शरीर एवं आत्मा की उच्चत्तम क्षमता तक पहुँच सकते है ।
।। आसन और योग में अंतर है ।।
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